Thursday, December 30, 2010

मां

मां की आवाज ही सारी चिंताओं को काफूर कर देती है, इस अटूट सत्य को अब विज्ञान ने भी स्वीकार कर लिया है। हालिया शोध के मुताबिक, मां का फोन आना उतना ही प्रभावशाली होता है, जितना कि मुश्किल पलों के बाद मां का गले लगाना। ये दोनों ही आपकी चिंताओं को छूमंतर करने में असरदार होते हैं। ब्रिटेन के विसकिंसन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने 61 युवा महिलाओं में तनाव के हार्मोन, कोर्टीसॉल और ऑक्सीटोसिन हार्मोन के स्तर को जांचा और इसके बाद यह सामने आया कि मां की आवाज आपके तनाव को कम करने में सहायक होती है। शोधकर्ताओं ने ये प्रयोग उन युवा लड़कियों पर किया, जिनकी उम्र 7 से 12 वर्ष के बीच में थी। प्रयोग के तहत उन्हें आम जनता के सामने बोलने को कहा गया और इसके बाद उन्हें मौखिक अंकगणितीय टैस्ट करने को कहा गया।
कार्यक्रम खत्म होने के तुरंत बाद एक तिहाई लड़कियां अपनी मां का शारीरिक एहसास पाकर सहज थीं, तो एक तिहाई लड़कियों ने मां का फोन आने के बाद खुद को सहज महसूस किया। लेकिन एक तिहाई लड़कियों को कोई सपोर्ट नहीं मिला। उन्होंने 75 मिनट तक न्यूट्रल फिल्म देखी। जैसी उम्मीद थी लार में कोर्टीसॉल का स्तर बढ़ा हुआ था। लड़कियों में पब्लिक के सामने बोलने को लेकर खासा तनाव था। लेकिन तीस मिनट के बाद देखा गया कि जिन लड़कियों को मां का शारीरिक संपर्क मिल गया था, उनमें कोर्टीसॉल का स्तर सामान्य था। मां से फोन पर बात करने वाली लड़कियों को फिर से सामान्य होने में करीब एक घंटा लगा। लेकिन जिनका मां से किसी तरह का संपर्क नहीं हुआ, उनमें ये स्तर बात करने वालों की तुलना में एक तिहाई अधिक था। ऑक्सीटोसिन का स्तर उनमें अधिक था, जिनको मां ने गले लगाया। ऑक्सीटोसिन हॉर्मोन बेहतरी का एहसास दिलाता है और विश्वास बढ़ाने वाला हॉर्मोन होता है। पिछले शोध बताते थे कि यह शारीरिक एहसास के बाद ही बढ़ता है। लेकिन नए शोध ने ये बात पुख्ता कर दी कि ये हॉर्मोन बात करने के द्वारा भी बढ़ता है। रिपोर्ट कहती है कि स्पर्श की तरह बोलना भी काफी असरदार होता है। शोधकर्ताओं ने कहा कि शारीरिक एहसास के विकल्प के तौर पर बोल कर ऑक्सीटोसिन की मात्रा को बढ़ाया जा सकता है।

om sai










who knows this world will end to night